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उसे 2015 में आंध्र प्रदेश के एक सर्कस से कैद की जिंदगी से बचाया गया था। उसने अपने अंतिम वर्ष शांतिपूर्ण तरीके से अभयारण्य में बिताए। वृद्धावस्था के चलते सबको अलविदा कह गई सूजी हथिनी सूज़ी, नौ वर्षों से अधिक समय तक वाइल्डलाइफ एसओएस की देखरेख में थी। वृद्धावस्था के चलते सबको अलविदा कह गई। सूज़ी की आज़ादी की यात्रा नौ साल पहले शुरू हुई, जब वह दृष्टिहीन लेकिन जोश से भरी हुई, हाथी संरक्षण और देखभाल केंद्र पहुंची।आशा और लाखी हमेशा रहते थे साथ उसकी देखभाल करने वाले पशु चिकित्सक और उसकी सबसे अच्छी दोस्त आशा और लाखी हमेशा उसके साथ रहती थीं। तीनों हरे-भरे जंगल में घूमते हुए या पूल में पानी से खेलते हुए घंटों बिताते थे, जिससे एक अटूट संबंध बन गया था जो उन्हें आराम और खुशी देता था।उसके लिए बनता था विशेष आहार एक वृद्ध हथिनी के रूप में सूज़ी को कई स्वास्थ्य चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा था। जिसमें उसकी दाढ़ों का नुकसान भी शामिल था। उसकी देखभाल करने वाले प्यार से उसके लिए एक विशेष आहार बनाते, जिसे "सूजी स्मूथी" के नाम से जाना जाता था, जो मसले हुए पानी वाले फलों से बनाया जाता है।उनके विशेष रिश्ते के सम्मान में वाइल्डलाइफ एसओएस ने "माई स्वीट पारो" नामक एक डॉक्यूमेंट्री फिल्म भी बनाई थी। जो सूज़ी और उसकी देखभाल में लगे बाबूराम के बीच अटूट संबंध का वर्णन करता है। फिल्म में उनके एक साथ समय बिताने के क्षणों को कैद किया गया है, जो बाबूराम के अटूट समर्पण और शब्दों से परे प्यार को उजागर करता है
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